Arkavashi Kshatriya Integration
इन क्षत्रियों के अन्य मुख्य भेद हैं खंगार (जिनका बुंदेलखंड में एक गौरवशाली इतिहास रहा है), गौड़, बाछल (बाछिल, बछ-गोती), अधिराज, परिहार, गोहिल, सिसौदिया, गुहिलौत, बल्लावंशी, खड़गवंशी, तिलोकचंदी, आर्यक, मैत्रक, पुष्यभूति, शाक्यवंशी, अहडिया, उदमतिया, नागवंशी, गढ़यितवंशी, कोटवार, रेवतवंशी, आनर्तवंशी, इत्यादि. अर्कवंशी क्षत्रियों की एक प्रशाखा 'भारशिव' क्षत्रियों के नाम से भी प्रसिद्द हुयी है. ये मुख्यतः भगवान् शिव के उपासक थे और शिव के लिंग स्वरूप को अपने गले में धारण किये रहते थे. शिव का भार (वजन) उठाने के कारण ही ये 'भारशिव' (भारशिव = भार (वजन) + शिव (भगवान)) कहलाये. भारशिव क्षत्रिय अत्यंत वीर और पराक्रमी थे. इनकी राजधानी पद्मावती और मथुरा में थी. प्राचीन काल में जब कुषाणों ने काशी नगरी पर आक्रमण करके उस पर अपना कब्ज़ा कर लिया तो तत्कालीन काशी-नरेश ने पद्मावती के भारशिव क्षत्रियों से मदद मांगी. भारशिव क्षत्रियों ने अपनी वीरता से काशी नगरी को कुषाणों से मुक्त करवा दिया और इस विजय के बाद उन्होंने गंगा-घाट पर अश्वमेघ यज्ञ करवाए. भारशिव क्षत्रिय अपने समय के वीरतम क्षत्रियों में से एक थे और इनके वैवाहिक सम्बन्ध सभी तत्कालीन राजवंशों से थे, इनमें वाकटक राजवंश का नाम प्रमुख है.