अर्कवंशी क्षत्रिय

Arkavashi Kshatriya Integration

ओम भूर्भुव स्व: कालिंगशोभ्दव, काश्यप गोत्र रक्त वर्ण का अर्क! I इहागच्छ, इहातिष्ठ, अर्काय नम:

अर्कवंशी भारतवर्ष का एक प्राचीन क्षत्रिय वंश है। और सूर्यवंशी क्षत्रिय परंपरा का एक अभिन्न अंग है। कश्यप के पुत्र सूर्य हुए सूर्य के साथ पुत्रों में से एक वैवस्वत मनु हुए जिन्हें अर्क - तनय के नाम से भी जाना गया है। इन्हीं वैवस्वत मनु ने अपने पिता सूर्य के नाम से सूर्यवंश की स्थापना की प्राचीन काल से ही सूर्यवंश अपने पर्यायवाची शब्दों के नाम से जाना जाता है। समय के साथ सूर्यवंश के पर्यायवाची शब्दों जैसे अर्कवंशी आदित्य एवं मित्रवंश इत्यादि के नाम पर सूर्यवंश की समांतर क्षत्रिय शाखाएं स्थापित हो गई। जिन सूर्यवंशी क्षत्रियों ने सूर्य के पर्यायवाची शब्द अर्क के नाम से अपनी पहचान स्थापित की हुए की कालांतर में अर्कवंशी क्षत्रिय कहलाए। अर्कवंशी क्षत्रिय वास्तव में सूर्यवंशी क्षत्रिय ही थे।जो अपने कुल देवता पितामह सूर्य को उनके अर्क स्वरूप में पूछते थे। कालचक्र के साथ अनेकों बार जीतते हारते अर्कवंशी क्षत्रिय अपने बुरे वक्त में अर्कवंशी से अर्क फिर अरक कहलाने लगे। स्थानीय बोलचाल की भाषा में अर्क शब्द बिगड़ कर अरक और धीरे-धीरे अरख  हो गया अर्कवंशी क्षत्रियों का इतिहास अत्यंत गौरवशाली है। और अनेक वीर महापुरुषों की महा गाथाओं से परिपूर्ण है।
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अर्कवंशी क्षत्रियों के भेद

इन क्षत्रियों के अन्य मुख्य भेद हैं खंगार (जिनका बुंदेलखंड में एक गौरवशाली इतिहास रहा है), गौड़, बाछल (बाछिल, बछ-गोती), अधिराज, परिहार, गोहिल, सिसौदिया, गुहिलौत, बल्लावंशी, खड़गवंशी, तिलोकचंदी, आर्यक, मैत्रक, पुष्यभूति, शाक्यवंशी, अहडिया, उदमतिया, नागवंशी, गढ़यितवंशी, कोटवार, रेवतवंशी, आनर्तवंशी, इत्यादि. अर्कवंशी क्षत्रियों की एक प्रशाखा 'भारशिव' क्षत्रियों के नाम से भी प्रसिद्द हुयी है. ये मुख्यतः भगवान् शिव के उपासक थे और शिव के लिंग स्वरूप को अपने गले में धारण किये रहते थे. शिव का भार (वजन) उठाने के कारण ही ये 'भारशिव' (भारशिव = भार (वजन) + शिव (भगवान)) कहलाये. भारशिव क्षत्रिय अत्यंत वीर और पराक्रमी थे. इनकी राजधानी पद्मावती और मथुरा में थी. प्राचीन काल में जब कुषाणों ने काशी नगरी पर आक्रमण करके उस पर अपना कब्ज़ा कर लिया तो तत्कालीन काशी-नरेश ने पद्मावती के भारशिव क्षत्रियों से मदद मांगी. भारशिव क्षत्रियों ने अपनी वीरता से काशी नगरी को कुषाणों से मुक्त करवा दिया और इस विजय के बाद उन्होंने गंगा-घाट पर अश्वमेघ यज्ञ करवाए. भारशिव क्षत्रिय अपने समय के वीरतम क्षत्रियों में से एक थे और इनके वैवाहिक सम्बन्ध सभी तत्कालीन राजवंशों से थे, इनमें वाकटक राजवंश का नाम प्रमुख है.

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